कपिल देव

कपिल देव
चित्र

Thursday, February 25, 2010

इस तरह जो बचा रहेगा वह

यहीं से शुरू होगा इतिहास
पिछला बाकी सारा पीछे छूट जाएगा
पलट दिया जाएगा पन्ना
सरकारें
बदल दी जाएंगी
स्मृतियां रहेंगी - मगर रोती हुई - किसी कोने या कूडेदान में

जो बचा रहेगा वह
इतिहास नहीं इतिहास के बचे होने का शोक होगा
बस, शोक ही बचा रहेगा
शोक का इतिहास नहीं बचा रहेगा

गांधी का नाम ले लेकर हलकान हो रहे लोगांे
सोचो, क्या है तुम्हारा संकल्प
किस श्रेणी के डिब्बे में यात्रा कर रहा है तुम्हारा स्वाभिमान
जबकि तुम्हें पकड़ लिया गया है बिना टिकट यात्रा के जुर्म में पहले ही
तुम्हारी गुप्त आकांक्षाओं के किसी प्लेटफार्म पर

बेचारा यह मजबूर समय
जिन हाथों में अपने भविष्य की रेखाएं खोज रहा है
उन हाथों नें तो पहले ही
खूनी चेहरेां की कालिख छिपाने का ठेका ले लिया है

‘समय’ नें शर्म का सामना करना सीख लिया है
अब उसकी चेतना धूप के लिए किसी सूरज का इंतजार नहीं करती
अब तो कुछ शब्द ही काफी हैं
वैसे धूप में धूप बची भी कहां है
जहां होती थी धूप
वहां रोशनी के नाम पर अब
गर्व से तनी एक तर्जनी है
जिसके नाखून पर चमक रहा है
अपने ही विरोध में विश्वास मत डाल चुकने का निशान!


अब तो
पानी पर छाई हरी हरी काई हरेपन का
मिसाल बन गई है जैसे-
हरीतिमा को स्थगित कर काई का हरापन हो रहा है पर्यावरणीय

तितलियों,
फूलों और इंद्रधनुष के रंगांे का रक्त निचोड लिया गया है
दरबारों में सज्जित
स्वस्तिक छाप अल्पनाओं पर
सजाया गया अमृत कलश अस्ल में तो
देवासुर संग्राम का विष-कुम्भ है
जिसका स्वर्ण-मुख-दीप
रंगों के रक्त से प्रदीप्त हो रहा है।

इतिहास में
यह नवीनतम उपयेाग है
रंगों का

इसतरह
तितलियों,फूलों और इंद्रधनुष की आत्माओं की पहचान को
पहचान की सूली पर टांग दिया गया है अैार
हुक्मरानों नें रंगों से साठ गांठ कर ली है

अब रंग ही लिखंेगे हमारी पहचान

हमें रंगो से पहचाना जाएगा-
उन रंगों से, जो
तितलियों और फूलों और इंद्रधनुष की हत्या और अनन्त पाप
के खनिज हैं

संविधान के कंगूरों पर लहराता
केसरिया-लाल-सफेद- हरा-पीला-नीला
ही अब
वर्तमान की रगों में बहते रंगों का इतिहास माना जाएगा

तितलियों
फूलों और
इंद्रधनुष के रंगों का नया इतिहास!
लिखा जाएगा
इस तरह।


20.02.010

Sunday, February 14, 2010

‘प्रेम का जंगल’

वियतनामी कहानी ‘प्रेम का जंगल’
लेखक: ट्रंग ट्रंग डिन्ह


वियतनाम के एक विद्यालय में अंग्रेजी की शिक्षिका ‘वूआन ली ’ नंे यह कहानी मूल वियतनामी से अंग्रेजी में अनूदित करके, भेजा है,। उनके ही आग्रह पर मैनें इसका अ्रग्रेजी से हिन्दी में अनुवाद किया है। हिन्दी में अनुवाद के दौरान कहानी के कईस्थलों का आशय स्पष्ट करने में उन्होंने अलग से भी मेरी सहायता की है। ली वियतनामी ओैर अंग्रेजी - दोनों भाषाओं में कविताएं लिखती हैं। अमरीकी सेनाओं द्वारा वियतनाम के गांवों में गिराए गये नापाम बमों का खौफ, अपने बचपन के दिनों में, उन्होंने खुद भी झेला है । -अनुवादक

( 21सितम्बर 1949 को जन्मे इस कहानी के लेखक ट्रंग ट्रग डिन्ह हाई स्कूल तक पढ़ाई करने के बाद वियतनाम की सेना में भर्ती हो गये थे । टे-गुवेन के मोर्चे पर अमरीकी फौजों का मुकाबला किया। वहीं सेना में रहते हुए एक आर्ट्स कालेज से ग्रेजुएट तक की शिक्षा प्राप्त की।
कई कविता पुस्तकें, उपन्यास, कहानीसंग्रह और फिल्म स्क््िरप्ट प्रकाशित। साहित्य और कला के क्षेत्र में उत्कृष्ट काम के लिए वियतनाम लेखक संघ के प्रतिष्ठित पुरस्कार से पुरस्कृत डिन्ह को वर्ष 2000 के राष्ट्रीय पुरस्कार से भी सम्मानित किया जा चुका है। फिल हाल श्री डिन्ह वियतनामी लेखक संध के प्रकाशन संस्थान के निदेशक का पद सम्हाल रहे हैं- वूआन ली )

एच-15 यूनिट के एक भूतपूर्व कामरेड से ‘थिन्ह’ की मृत्यु का समाचार सुन कर ‘की-सोर-हाइ’ का दिल बैठ गया। अमरीकी फौजों द्वारा आसमान से गिराई गई ‘डाईआक्सिन’ नामक जहर की चपेट में आ जाने से थिन्ह की मौत हो गई थी। हाइ और थिन्ह दोनों वर्षो तक एच-15 यूनिट में साथ रह चुके थे। थिन्ह और हाइ एक दूसरे को बहुत प्यार करते थे। यूनिट से वापस आ जाने के बाद हाइ लगभग रोज ही थिन्ह को सपनों में देखती थी। वह देखती कि थिन्ह नें उसे अपनी बाहों में भर लिया है। लेकिन वह चूमने के लिए जैसे ही आगे बढ़ता, कि अमरीकी बमवर्षक जहाजों का शोर उसे भयभीत कर देता ओैर वह हाइ को छोड कर दूर भाग जाता। हाइ उसका पीछा करना चाहती। लेकिन उसे लगता कि उसके पांव पत्थर की तरह जड़ हो गये हैं। वह अपनी जगह से हिल तक नहीं पाती।
नींद टूटने पर भी लगता कि उसके पैर उठ नहीं पा रहे हैं। कभी उसे लगता कि थिन्ह शायद अमरीकी सेना पर आक्रमण के लिए जंगल में ,झाड़ियों के पीछे घात लगा कर बैठा है। यह सेाचते हुए उसे फिर नींद आ जाती और सपने में वह देखती कि अपनी बाहों में भर कर थिन्ह उसे एक झरने के पास ले गया है। झरना सूखा है। वहां रंगविरंगी तितलियों का एक स्कूल है। उन दोनेां की वहां मौजूदगी नें उस स्कूल के वातावरण को अनजाने ही डिस्टर्ब कर दिया है। हाइ को अचानक लगता कि वह पंख की तरह एक दम हल्की हो गइ्र्र है ओैर थिन्ह को वहीं अकेला छोड़ तितलियों के झुण्ड में शामिल हो गई है।
कभी वह देखती कि थिन्ह किचेन के दरवाजे पर लकड़ी के मोर्टार पर बैठे बैठे उसे देख रहा है। उसके हाथ में एक किताब है। वह उसे ।ठब्क् पढ़ा रहा है। थिन्ह के मुंह से अक्षर रंगीन तितलियों की तरह निकल कर उसके ऊपर रंगों की बौछार कर रहे हैं। सपने में उसे यह सब इतना मजेदार लगता कि वह खुशी से चीख पड़ना चाहती। लेकिन उसे लगता कि उसके होंठ मानों सिल गये हैं और चीख उसके गले में ही घुट कर रह गयी है। घुटन के मारे उसकी नींद उचट जाती और सपने का यह दृश्य उसे उदास कर जाता। घीरे धीरे नींद आने पर वह फिर उसी तरह सपने देखने लगती। वह देखती कि थिन्ह ओैर उसके प्रेम का जंजालों से भरा दृश्य एक बार फिर उसके सामने है। एक बार उसने देखा कि थिन्ह की पीठ पर वजनदार पैपून लदा है, जिसकी वजह से उसके कंधे झुके हुए हैं। कभी वह देखती कि खूब तेज धूप हुई है और थिन्ह अमरीकी सेना द्वारा गिराए गए नापाम बम से जलते हुए जंगल मे दौड़ रहा है। जबकि आग की लपटें आसमान छू रही हैं। एक बार तो हाई नें सपने में देखा कि आग की लपटों में थिन्ह किसी विस्फोटक की तरह तड़-तड़ की आवाज के साथ जल रहा है। आग की लपटों से घिरा उसका जिस्म इमा मो... के किनारे रेत पर लुढ़क रहा है। सपने में ही वह सोचती, ‘‘हे ईश्वर ! यह नहीं हो सकता- सपनें में वह जोर से चिल्ला पड़ती- थिन्ह !!! पानी में कूद जाओ। पानी तुम्हारे शरीर पर लगी आग को बुझा देगा।’’ वह देखती कि थिन्ह पानी में कूद गया है। अब चश्मे का पानी हरहरा कर घाट पर बढ़ा आ रहा है, जहां वह अलस्सुबह खाना पका कर थिन्ह के आने का इंतजार कर रही है। तभी अचानक एक अमरीकी बम गिरा है और सारे बर्तन तितर-बितर हो उठे हैं। वह और थिन्ह दोनों बम से फिंक कर जंगल की चोटी पर जा पहुंचे हैं। खांसी के मारे थिन्ह का बुरा हाल है। कभी-कभी वह देखती कि थिन्ह धान के हरे भरे खेतों के ऊपर हवा में उड़ रहा है। उसका समूचा बदन नंगा है। वह नीचे लौकी के फूंलों को चुन रही है। तभी, अचानक, एक अमरीकी बमवर्षक जहाज ने आसमान में जहर बिखेर दिया है। सारा आसमान धुंएं से भर गया है ओैर थिन्ह धुंएं में धिर गया है। उसके पास अपना मुंह ढकने के लिए एक गीला कपड़ा तक नहीं है। वह देखती कि थिन्ह उसकी आंखेंा के सामने ही धूंऐ से घुट कर मर रहा है। हाइ मारे डर के चिल्ला पड़ती। थिन्ह, हाइ को ऊपर खींचने के लिए हाथ बढ़ाता । लेकिन उसके पैर जैसे जड़ हो जाते, हाथों में मानो जोर नहीं रह जाता। मजबूर होकर वह सिर्फ चिल्लाता- भागो !! भागो्््!!


एच-15यूनिट के तमाम दूसरे जवानेां की तरह, पहाड़ के जंगल से लकड़ी, मैनियोक और सब्जी आदि ला कर हाइ को मुहैय्या करने का काम थिन्ह को भी करना पड़ता था। मगर हाइ को, लम्बा ओैर दुबला थिन्ह, औरों से काफी अलग तरह का इंसान लगता था। उसे उसमें ऐसा कुछ खास दिखता था जो औरों में न था। वह उसे अंग्रेजी की वर्णमाला सिखाता था। उसके पढ़ाने का ढंग बहुत अनाड़ी था। मगर हाइ का दिल उसे बहुत आसानी से सीख लेता। थिन्ह अकसर खराब तरीके से भी बात करता मगर हाइ को उसकी हर बात प्यारी लगती। उसका बेतकल्लुफी भरा व्यवहार हाइ को भावुक बना देता। वह इतना लम्बा था कि रसोई घर का दरवाजा उसके लिए बहुत नीचा लगता। जबकि औेरों के लिए ठीक था। जब भी वह पैपून आदि भारी सामान अपनी पीठ पर लाद कर लाता तो उतारने के लिए पहले तो उसे घुटनों के बल पर झुकना पड़ता, तब वह रसोई में घुस पाता और अपने पीठ पर लदा पैपून किसी तरह से जमीन पर रख पाता। हाइ थिन्ह को बेतरह चाहती थी। लेकिन उसके पास अपने दिल की बात कह पाने का साहस नहीं था। उसनें अपने हाथों से थिन्ह के लिए एक अलमारी तैयार कर दी थी ताकि पीठ पर लदा सामान उतारने के लिए उसे घुटने के बल झुकने की तकलीफ से बचाया जा सके। लेकिन थिन्ह के मन में हाइ के लिये इसतरह का कोई भाव नहीं था। वह तो उसे अपनी छोटी बहन की तरह ही समझता था और वैसा ही व्यवहार करता था। यहां तक कि वह उसके बालों तक को सहला देता। उसकी हर चीज की प्रशंसा करता। उसे इस बात की तनिक परवाह न थी कि हाइ एक शादी-शुदा औरत है और उसके एक बच्चा भी है। वह जब भी काम से वापस आता तो हाइ के लिए कुछ न कुछ उपहार जरूर लाता। कभी किराक लकड़ी से बना ब्रेसलेट तो कभी अमरीकी जहाजों की स्टील से बनी कंघी !
एक बार उसने उपहार के रूप में हाइ को लकड़ी के दानों से बना एक माला दिया। यह इतना कीमती ओैर दुर्लभ था कि हाइ ने ऐसी माला अपने पूरे जीवन में पाने की कभी कल्पना भी नही की थी। ‘‘ अगर यह जंगली किराक लकड़ी से बना हुआ है तो यह इतना रंगीन कैसे हो सकता हैं?’’- हाइ नें थिन्ह से पूछा था। तब थिन्ह नें छोटे छोटे औैजारों से बना एक उपकरण,एक छोटा ड्रिल और पालिश दिखाया। उसने बताया था कि पीढ़ियों से ये चीजें अपने बाप दादा से विरासत मंे मिलती चली आ रही हैं। ठीक उसी तरह जैसे कि जारी जाति(दक्षिण वियतनाम का एक अल्पसंख्यक समुदाय) के लोग बंदूक और चाकू के बिना रह नहीं सकते, वैसे ही हमारे लिये ये उपकरण हंै।
चू मो(एक पहाड़) का अभियान खत्म हो चुकने के बाद एच-15 यूनिट वापस आ चुकी थी। मगर थिन्ह नहीं लौटा था। थिन्ह के बिना हाइ का किसी काम में मन नहीं लगता था। वह खाना बनाने का काम भूल कर यहां वहां गायब हो जाती। कामरेड उसे खोजा करते। वह थिन्ह की याद में खोई कभी कही तो कभी कहीं अन्यमनस्क सी बैठी मिलती। मन ही मन वह थिन्ह से कहती,‘‘अगर दूसरे कामरेडों के साथ तुम नहीं आ सकते थे तो मेरे लिए कम से कम एक चिटठी ही छोड़ दिये होते.... तुम तो हमेशा कुछ न कुछ उपहार दिया करते थे...’’ बाद में उसे पता चला था कि थिन्ह यूनिट के काम से रूका हुआ है। वह मरा नहीं है। जब वह लौट कर आया तो हाइ ने महसूस किया कि वह अब पहले वाला थिन्ह नहीं है। हाइ से वह बहुत कम मिलता। पहले की तरह उसे कोई उपहार भी वह अब नहीं देता था। हाइ उसके बदले हुए व्यवहार से बहुत दुखी और चुप-चुप रहने लगी थी। न उससे बात करती और न ही उसकी तरफ देखती । थिन्ह के साथ उसके सम्बन्धों को ले कर कामरेडों के मजाकों को भी वह अब अनसुना कर देती थी। अब जब थिन्ह सब्जी या कोई अैार सामान ले कर रसोई में आता तो वह किसी काम में व्यस्त होने का बहाना करने लगती। उसने अपने मन को समझाया, ‘‘अब हमे इसकी परवाह नहीं करनी है।’’ एक बार थिन्ह अपनी गीली कमीज सुखाने के लिए रसोई में आग के पास कुछ देर तक रूका रहा। हाइ ने इस काम में उसकी कोई मदद नहीं की। एक वक्त वह भी था जब वह खुद उसके कपड़े सुखाया करती थी। लेकिन इस बार ?.... नहीं....। अब वे दोनो बदल गये थे। तभी मोैका देख कर थिन्ह नें पूछा, ‘‘ क्या तुम मुझसे नाराज हो ?’’ हाइ ने कोई उत्तर नहीं दिया। हां, चूल्हे की जलती आग मे उसने कुछ और लकड़ियां जरूर डाल दी। ओैर उसके बाद आर्मी पाट में पानी भर कर उसमें सूअरों का खाना तैैयार करने के लिए मैनियाक के टुकडों को मिलाने लगी थी।
यूनिट में हर किसी को यह बात मालूम थी कि थिन्ह कुंवारा है। जबकि हाइ को-पा-हेंग की पत्नी है और उसके एक बच्चा भी है। बच्चा जब 3 वर्ष का हो गया तो हेंग नें हाइ को गुरिल्ला यूनिट में काम करने से मना कर दिया था। और उसे वापस घर भेज दिया था। लेकिन कुछ महीने बाद जब वह घर गया तो हाइ को लड़ाकू क्रांतिकारियों के कैम्प में ले कर आ गया, जहां वह जिला कमिटी के बेस-कैम्प मे रसोइये का काम करने लगी थी। वहां करीब छ महीना ही उसने काम किया होगा कि हेंग उसे लेकर सैनिक बटालियन की मुख्य टुकड़ी- एच-15 यूनिट- चला आया। इस यूनिट के सभी कामरेड क्योंमिक शिक्षित और अनुशासन प्रिय उत्तरी वियतनाम के निवासी थे ,इसलिए हेंग ने सोचा कि हाइ को इस यूनिट में ही रखना पूरी तरह सुरक्षित रहेगा।
हाइ ने हेंग को पहली बार अपने गांव में देखा था। हेंग का दल मुक्ति अभियान में गुरिल्ला नौजवानों की भर्ती के लिए उसके गांव में आया था। तब हाइ हेंग के गंभीर व्यक्तित्व से प्रभावित हुए बिना नहीं रह सकी थी। वह उसे मन ही मन चाहने लगी थी। हाइ को मालूम हुआ कि हेंग शादी-शुदा है और उसके दो बच्चे भी हैं। मगर जब उसने जाना कि अमरीकी सेना के अत्याचारी दबाव के नाते उसकी पत्नी को उसे छोड़ कर दुश्मन की सेना के किसी सिपाही के साथ चले जाना पड़ा है, तो वह हेंग को ओैर भी अधिक चाहने लगी थी। प्ली-डिट गांव के गुरिल्लाओं को यह जान कर बड़ी जलन होने लगी कि हाइ और हेंग एक दूसरे को चाहते हैं। पहले तो हाइ उसे अंकल कह कर बुलाती थी। लेकिन कुछ ही दिनों बाद भाई साहब कहने लगी। फिर बाद में तो दोनों इतना घुलमिल गये कि बिना किसी झिझक या शर्म के एक दूसरे से लिपट भी जाया करते थे। हाइ के माता-पिता को इसकी खबर नहीं थी। जिला कमिटी के सीनियर सिपाहियों ने जब सुना कि उनका लीडर अपने से काफी कम उम्र की एक गुरिल्ला लड़की से प्यार करता है तो उन्हंे भी यह अच्छा नहीं लगा। पार्टी सेल की बैठक में भी इसकी चर्चा गर्म रही। किसी ने हाइ से पूछा, ‘‘ क्या यह उचित है?’’ ‘‘ इसमें अनुचित जैसा तो कुछ भी नहीं है - हाइ ने कहा-अगर वह मुझे प्यार करता है तो इसमें बुराई क्या है?’’ इसके कुछ ही दिन बाद दोनों ने शादी कर ली थी। उनके एक बच्चा भी हुआ था। बच्चा पैदा होने के बाद हाइ दिन प्रति दिन सुंदर दिखने लगी थी। युद्ध के आतंक का उस पर कोई असर नहीं था। उसका रंग काफी निखरा हुआ और होठ रसीले दिखने लगे थे। उसके रूप का आकर्षण दिन प्रति दिन बढ़ता ही जा रहा था। उसकी आवाज में पहले की अपेक्षा दसगुना मिठास भर गई थी। पहले इक्का-दुक्का लोग ही उसकी तरफ ध्यान देते थे लेकिन अब तो हर कोई उसके रूप का दीवाना था। जंगल में खिले हुए हजार हजार फूलों में वह अब एक ऐसा खूबसूरत फूल थी जिस पर जाकर सभी की आंखे ठहर जाती थी। उसकी निखरी हुइ्र्र सुंदरता ने उसके पति हेेंग को चिंता में डाल दिया था। हेंग नें मन ही मन अपने आप से कहा, ‘‘एक ही रास्ता है-, या तो जिला सशस्त्र बल का नेतृत्व छोड़ कर पत्नी और बच्चों के साथ गांव चला जाऊं या फिर हाइ एच-15यूनिट की सदस्यता छोड़ कर बच्चे के साथ वापस गांव चली जाय।’’ तमाम ना नुकुर के बाद अंततः हाइ को ही यूनिट छोड़ने का निर्णय लेना पड़ा। हाइ को गावं भेज कर, उसने उसके वहां आराम से रहने का सारा इंतजाम कर भी कर दिया। लेकिन, हाइ को गांव भेज देने के बाद भी हेंग निश्चिंत नहीं हो सका था। अब भी उसका मन काम में नहीं लगता था। उसकी उलझन को महसूस करते हुए जिला कमिटी नें उसे सलाह दी कि वह हाइ को यही लेता आये, उसे कुक के काम पर लगा दिया जाएगा। कमिटी के सदस्यों ने विचार बनाया कि पहले हाइ जिला कमिटी के लिए कुछ दिन कुक का काम करे। फिर उसे उच्च शिक्षा के लिए और फिर उसके बाद डाक्टरी पढ़ने के लिए बाहर भेज दिया जाएगा। लेकिन, हाइ को जिला कमिटी में वापस ला कर भी हेंग निश्चिंत नहीं हो पाया था। क्योंकि यहां के कामरेड, किसी भी जिला समिति के कामरेडों से, अधिक सुंदर, आकर्षक, हंसमुख, सुसभ्य और स्वस्थ थे। उन्हें सशस्त्र यूनिट के कामरेडों की तरह युद्ध में भी नहीं जाना पड़ता था। इस तरह उनका जीवन काफी सुरक्षित और आसान भी था। ऐसी स्थिति में हेंग भला निश्चिंत कैसे रह सकता था? संयोग से उसी समय वहां एच-15 यूनिट भी तैनात की जा रही थी। हेंग नें इस यूनिट के लीडर हान से जब अपनी बात कही तो वह हाइ को अपनी यूनिट का न केवल कुक बल्कि मैनेजर भी बनाने के लिए तैयार हो गया। पहले तो हाइ वहां जाने के लिए तैयार न हुई। क्योंकि वह जानना चाहती थी कि ‘‘यहां से उसे क्यों वहां भेजा जा रहा है। जबकि यहां अभी उसनें अपना काम शुरू ही किया है।’’
-- हेंग ने कहा,‘‘तुम क्रांति के अभियान में शामिल हो, इसलिए तुम्हें आदेश का पालन करना होगा।’’
--‘‘लेकिन मेरे बेटे की देखभाल कोैन करेगा ?’’ हाइ ने चिंतित स्वर में अपने पति हेग से पूछा।
--‘‘ वह अपने नाना-नानी और मेरे पास रहेगा। मैं महीने-दो महीने में जा कर उसकी देख-भाल करता रहूंगा।’’ हेग नें कहा।
-- हाइ नें जोर दे कर कहा, ‘‘पहले वादा करो कि एच-15 यूनिट में जाने के बाद भी तुम मुझे अपने बेटे के पास जाने दोगे।’’ उसे छोड़ कर रहना मुझे बहुत खलेगा। मैं उसे बहुत मिस करूंगी।’’
-- ‘‘ हम लोग क्रांतिकारी अभियानों में लगे हुए लोग हैं। हमें ‘मिस करने’ जेैसे शब्दों से हर हाल में परहेज करना चाहिए। अब मुझे सब इंतजाम करने दो।’’, हेंग नें कहा।
-- ‘‘ हे ईश्वर ! तुम हमेशा यही दुहराते हो- ‘‘ हमे हर हाल में’...... ’’ हाइ ने मन मे कहा।


अपने प्यारे बेटे और जानी-समझी टुकड़ी को छोड़नें के निर्णय नें उसे दुखी कर दिया था। लेकिन वह कर भी क्या सकती थी। आदेश का पालन तो करना ही था। आखिर तो यह क्रांतिकारी अभियान के हित में लिया गया एक निर्णय था। उसे भला क्या पता था कि यह पार्टी का नहीं, हेंग का अपना निर्णय था। मगर हाइ के एच-15यूनिट में चले जाने के बाद भी हंेग की चिंता दूर नहीं हुई थी। हेंग के मन में यह आशंका घर कर गई थी कि कोई घात लगाए बैठा है और मोैका मिलते ही हाइ को ले कर उड़ जाएगा। इसलिए अब भी वह पूरी तरह से निश्चिंत नहीं था। अब वह सोचने लगता कि उत्तरी प्रांत के सैनिक स्मार्ट और पढ़े लिखे हैं। हो सकता कि मेरी वाईफ में उनकी रूचि न हो। लेकिन बहुत मुमकिन है कि वही किसी प्रेम कर बैठे। और यही हुआ भी। हाइ यहां आ कर पूरी तरह बदल गई थी। सेना की वर्दी में वह दिनों दिन स्वस्थ और सुंदर दिखने लगी। अब वह सलीकेदार मीठी भाषा में बातें करती। कैम्प मे रहते हुए वह कंघी, शीशा, तमाम तरह की वैसलीन और परफयूम रखने लगी थी। उसने कमरे की दीवालों पर सुंदर संुदर चित्र भी चिपका रखे थे। अब वह वियतनामी भाषा ‘किन्ह’ पहले से काफी अच्छा बोलना सीख गई थी। सब कुछ जानते हुए भी हेंग यह पूछ नहीं पाता था कि कौन है उसका टीचर। उसे क्या पता था, कि एक आशंका, जो हमेशा उसके मन में बनी रहती थी, वह अब सच होने जा रही थी।
हाइ की नजर में हेंग अब पहले जैसा स्मार्ट और दिव्य नहीं रह गया था। अब वह हमेशा बात बात पर लड़ाई झगड़ा करता रहता। एच-15यूनिट का कैम्प जहां लगा था, वह एक घना जंगल था। रात मे एकदम सन्नाटा छा जाता था । ऐसा सन्नाटा कि आप दूर बहते हुए झरने की आवाज सुन लें। यहां तक कि किसी सूखी टहनी के टूट कर गिरने की ‘खुट’सी आवाज या मच्छरदानी के बाहर मच्छरों की भिन भिन भी......। जब भी हेंग एच-15यूनिट के कैम्प में अपनी पत्नी हाइ से मिलने आता, तो उसके पास शराब की एक बोतल होती। बिना बोले, बिना बात किये,हाइ के सामने चुपचाप बैठ कर वह शराब पीता रहता। हाइ को भी आफर करने की बात वह सोचता तक नहीं। नशे में वह हाइ के साथ जैसे बलात्कार पर उतारू हो जाता। उसके कपड़ों को उतार फेंकता और उसके नंगे बदन को टार्च की रोशनी में निहारता। मगर, कामातुर हो कर नहीं। वह तो उसके बदन पर अनजान मर्दो के छोड़े हुए निशान ढूंढ़ता। पहले तो वह सोचती थी कि इसतरह वह उसके साथ हंसी-मजाक कर रहा है। इसलिए वह जोर जोर से हंसती और मजाक में कहती,‘‘अब ऐसा नया क्या है जिसे तुम देख रहे हो। सब तो वही है, पुराना-पहले जैसा।’’ मगर इतना कहने पर भी हेंग बोलता कुछ न था। एक दिन, जब वे दोनों काम-क्रिया में चरम पर पहुंचने पहुंचने को थे,तभी वह अचानक उठकर टेण्ट के बाहर भाग गया। वह एक अंधेरी रात थी। इतनी अंधेरी कि जैसे किसी नें स्याही उड़ेल दी हो। कुछ ही क्षण बाद वह फिर वैसे ही चुपचाप वापस आ गया और फिर उसे अपने आलिंगन मे कस लिया। मगर अबतक वह शांत और ठंढी हो चुकी थी। हाइ को संभेाग क्रिया मे ऐसी नीरसता का अनुभव इसके पहले नहीं हुआ था। वह अब बलात्कार करने पर उतारू हेा गया था। खिलौने की तरह हाइ को कभी नीचे पटक देता और कभी आसमान में उछाल देता। ऐसा एक बार नहीं,दो बार नहीं,यह आए दिन की बात हो गई थी।
यह सब करते-करते एक दिन जब कुछ न सूझा तब उसने कहा, ‘‘अब आज से मैं तुम्हारा पति नहीं हूं। समझी ?’’
‘‘नही-,हाइ उत्तर दिया-अब आज से मैं तुम्हारी बीवी नहीं हूं। अब मुझे अकेला छोड़ दो।’’
वह चीखा,‘‘मेरी बीवी नहीं हो? तो किसकी हो?’’
‘‘ किसी की नहीं’’ हाइ नें कहा।
हेंग नें के-59 राइफल उठा लिया।
‘‘ मुझे मार देना आसान हैै। लेकिन सोचो कि तुमसे पैदा हुए बच्चे की परवरिश कोैन करेगा- हाइ नें कहा, ‘‘अपने बच्चे की देखभाल के लिए अब मैं घर जाऊगीं।’’
अगली सुबह हेंग नें इस मसले पर यूनिट लीडर हान से विचार विमर्श किया तो हान नें उसे हाइ को यूनिट से ले जाने की इजाजत दे दी थी । इसके बाद हेंग उसे ले कर घर वापस चला आया। हेंग नें सोचा कि अब चिंता की कोई बात नहीं। हाइ अब एच-15 यूनिट के किसी कामरेड से मिल नहीं पाएगी। लेकिन हुआ ठीक इसके उल्टा। थिन्ह से अलग होने के बाद जेैसे जैसे दिन बीतते गये थे हाइ के दिल में उसके प्रति प्यार बढ़ता गया। थिन्ह को वह जितना ही याद करती, हेंग उतना ही ईष्र्या से भर जाता। जितना ही वह डाह करता, हाइ उतना ही शांत रहती। नतीजा यह हुआ कि दोनेां में आए दिन झगड़ा होने लगा। तंग आकर ग्रामप्रधान नें हेंग पर ग्राम देवता को सूअर की बलि चढ़ाने का जुर्माना ठोक दिया था।
अगले दिन, ग्रामदेवता को बलि चढ़ाने के बाद, हेंग अपने यूनिट के लिए रवाना हो गया। उसे ‘चू मो’ मोर्चे पर लड़ाई का प्लान तैयार करना था। इसबार उसकी टुकड़ी और एच-15 यूनिट को एक साथ मिलकर चीओ-रीओ (एक प्रांत) क्षेत्र को लिबरेट करने के लिए कूच करना था। थिन्ह के अग्रिम दस्ते को जिला सशस्त्र दस्ते की तैनाती के लिए उचित इलाके का पता करने की जिम्मेदारी सौंपी गई थी। तीन ग्रामीण साथियों औैर पुई बी को गुप्त गति विधियों के लिए लगा दिया गया था। संयोग से, हाइ से थिन्ह के अग्रिम दस्ते की भेंट हो गई। थिन्ह और हाइ दोनेंा एक दूसरे को पा कर चकित रह गये थे। गांव के गुरिल्ला जवानों की ओर से दी गई पार्टी में थेाड़ा पी लेने के कारण थिन्ह उस वक्त वह कुछ कुछ नशे में था।
यह जान कर कि थिन्ह नशे में है, कैम्प में लौटने पर,हाइ उसके लिए थोड़ा चिकेन सूप लेकर आई । उस समय दोनेां को ऐसा लगा था कि भगवान उनपर काफी मेहरवान है और भगवान की कृपा से ही दोनों की भेंट हो पाई हेै। बाकी दोनो कामरेड थिन्ह और हाइ के मुहब्बत से परिचित थे। इसलिए वे दोनेा कुछ ज्यादा ही देर तक गांव के जवानों के साथ पीने और खाने में समय गुजारते रहे। काफी दिनों के बाद दोनों मिले थे। इसलिए एकांत पाते ही दोनेां कस कर लिपट गये। दोनों एक दूसरे पर चुम्बनों की बैाछार करते रहे। वे इस कदर लिपट गये थे जैसे कि अब कोई भी ताकत उन्हे जुदा नहीं कर सकती। दोनो प्रेम में पागल हो रहे थे। हाइ, थिन्ह की बाहों में खुद को खो देने के लिए बेताब हो रही थी। और थिन्ह था कि रोमांच के अतिरेक से पत्ती की तरह कांप रहा था। उसे जाने क्या अचानक सूझा कि जल्दी जल्दी कपड़े पहन कर जंगल की तरफ भाग गया। हाइ से बिना एक भी शब्द कहे। चुपचाप। उसके बाद तो थिन्ह और उसका ग्रुप युद्ध के अभियान पर चला गया...।

हाइ के दोनों प्रेमियों में से अब कोई भी उसके पास नहीं रह गया था।

हाइ को छोड़ने के बाद हेंग नें जिला सशस्त्र बल की एक नर्स से रिश्ता बना लिया था,जिससे एक बच्ची थी। लेकिन कुछ ही दिन बाद वे दोनों चू मों पहाड़ पर दुश्मनों से लड़ते हुए मारे गये थे। उनकी मृत्यु का समाचार सुन कर हाइ यूनिट से उसकी बच्ची को अपने पास उठा लाई थी। अब उसके बेटे को एक बहन भी मिल गई थी। हाइ ने हेंग की बच्ची के नाम में अपना कुल-नाम भी जोड़ दिया। अब उसका नाम था- की-ओर हाइ-लिएन। धीरे धीेरे समय बीतता गया। अब तो उसका बेटा भी सशस्त्र सेना का लीडर बन गया है। और बेटी जिला अस्पताल में डाक्टर ।
ं हाइ की प्रेम कहानी जानने के बाद उसकी बेटी की-ओर-हाइ-लिएन नें थिन्ह की पहली पुण्य तिथि पर हाइ को उसके घर ले जाने के लिए अपने पति से कह कर ट्रेन का टिकट मंगवाया। थिन्ह के घर पहुंचने के बाद उन्हें पता चला कि युद्ध की विभीषिका के खत्म हो जाने के बाद भी, उसके दुष्परिणाम थिन्ह की बीवी का पीछा नहीं छोड़ रहे हैं। युद्ध में अमरीकी डाइआक्सिन जहर से थिन्ह तो मारा ही गया था, उसकी संतानों में भी उस जहर का प्रभाव चला आया है। उसके दोनों बच्चे जन्मजात विकृति से ग्रस्त हैं। थिन्ह की बीवी तो बांस की पतली छड़ी जैसी दुबली और कमजोर है। इतनी कमजोर कि उन अभागे बच्चों की देख भाल भी उसके लिए मुश्किल काम था। यह सब देख कर हाइ को रूलाई फूट पड़ी। उसने अपनी बेटी और दामाद से कहा, इनकी पीड़ा को बांटने के लिये अपनी रिटायरमेंट पेंशन और सैनिक बुक मैं इन्हें दे देना चाहती हूं -जंगल के उस आखिरी ढलान पर, जिसे तुम्हारे अंकिल थिन्ह प्यार का जंगल कहा करते थे ।


अनुवाद: कपिलदेव

Monday, February 8, 2010

गोरख को याद करते हुए

गोरख पाण्डेय की मृत्यु के ठीक बीस वर्ष वाद, उनके परिजनों ने उनके पैतृक गांव पंडित का मुडेरा, जिला कुशीनगर में अपने ही घर प्रांगण में उन्हें समारोह पूर्वक याद किया। यह स्मृति समारोह, गोरख के नाम पर स्थापित गोरख पाण्डेय स्मृति न्यास देवरिया के सहयोग से आयोजित किया गया था। समारोह में ,गोरख स्मृति न्यास के सभी साथियों, ग्रामीणों तथा आसपास की जनता के अलावा इलाहाबाद से जनसंस्कृति मंच के राष्ट्रीय महासचिव प्रणय कृष्ण, गोरखपुर से मनोज सिंह, अशोक चैधरी, देवेन्द्र आर्य,रामू,कपिलदेव आदि सहित तमाम लोग उपस्थित थे। गोरख पाण्डेय के बाल-मित्रों, गा्रम वासियों, परिजनों तथा क्रांतिचेता युवाओं सहित लगभग 50 लोगों नें उनसे जुड़ी अपनी स्मृतियों को ताजा किया। गोरख के स्मृति-दिवस पर सबने उनका विशद मूल्यांकन किए जाने की आवश्यकता महसूस की। यहां गोरख को कुद पंक्तियों में याद करने की मैने विनम्र चेष्टा की है। जाहिर है, यह उनका मूल्यांकन नहीं हैं। लेकिन यदि इन विन्दुओं को आधार बनाया जाय तो उनके सम्यक मूल्यांकन की एक रूप रेखा तो खींची ही जा सकती है-- कपिलदेव

मोटे तौर पर सब यही जानते हैं कि गोरख की प्रतिबद्धता माक्र्सवाद के प्रति थी। पार्टी के प्रति थी या जनता को शोषण से मुक्त करने का रास्ता दिखाने वाले सिद्धान्तों के प्रति थी। लेकिन मै कहना चाहूंगा कि सबसे पहले उनकी प्रतिबद्धता खुद अपनी संवेदना के प्रति थी। उनकी संवेदना का विस्तार इतना व्यापक और गहराई इतनी अगाध थी कि वे उसके साथ चतुर संासारिक किस्म का व्यवहार स्वयं भी नहीं कर सकते थे। दूसरे शब्दों में, उनकी संवेदना ही उनके समूचे व्यक्तित्व की नियामक थी। अपनी संवेदना का नियमन-संचालन वे नहीं, बल्कि इसके उलट उनकी संवेदना ही उनका नियमन-संचालन करती थी। कदाचित यही कारण है कि विचारधारा,संगठन या रचनाकार- जिस भी रूप में हम उनकेा जानते हैं, उनका वह रूप अगर अन्य विचारकों, संगठन कर्ताओं या रचनाकारों से अलग दिखता है तो इसीलिए कि वे पूरी तरह अपनी आंतरिक संवेदनशीलता से परिचालित व्यक्ति थे। अन्यों की तरह वे क्रांतिकारी विचारों के स्थूल प्रचारक या प्रतिबद्धता के नाम पर किसी पाटीर्, दल या विचारधारा द्वारा बताए नियमों का पालन करने वाले ऐसे आतुर क्रांतिकारी न थे जो सिर्फ अपनी निजी छाप या पहचान के लिए किसी संगठन के विचारों का बाहन बन कर रहना स्वीकार कर लेते हैं। इसके विपरीत गोरख एक ऐसे राजनीतिकर्मी,संस्कृतिकर्मी या विचारक थे जो अपनी आंतरिक संवेदनशीलता,, गहरी करूणा और स्वप्नशीलता के कारण इस धारा में स्वाभाविक तौर पर आते हैं। गोरख अगर मार्कसवाद के अनुयायी थे तो इसलिए कि माक्र्सवाद की बुनियादी विचारधारा उनकी संवेदना में पहले से मौजूद थी। यही कारण है कि वे माक्र्सवादी विचारों का बात बात में उल्लेख कर अपनी प्रतिबद्धता का प्रमाण देते रहने वाले बुद्धिजीवी न थे। माक्र्सवाद उनकी संवेदनशीलता मे नये तरह से प्रसार पाता था। जनता की मुक्ति उनके जीवन का केन्द्रीय स्वप्न था। इसलिए नहीं कि यह उनकी पार्टी का एजेण्डा था। बल्कि इसलिए कि यही उनकी संवेदना का एजेण्डा भी था। जनता के दुखेंा के प्रति स्वभावतः ही वे करूणा से ओतप््रोात रहते थे। इसलिए वे जहां और जिस काम में लगे हुए थे, वही और एक मात्र वही उनका रास्ता था। यह करूणा ही उन्हें सामाजिक राजनीतिक या संास्कृतिक बदलाव की गहन वैचारिकता में प्रवेश की प्रेरणा देती थी। उन्होंने माक्र्सवाद को सिर्फ पढ़ा ही नहीं, हृदयस्थ किया था। यों ही नहीं है कि वे अपने विचारों में, भाषणों में और लेखोें में किसी एकेडमिक सिद्धान्तकार या पेशेवर राजनीतिक या अमूर्त आदर्शवादी साहित्यकार की तरह अपने को अभिव्यक्त नहीं करते थे। उनकी अभिव्यक्ति की दिशा मूलगामी थी और उनकी सारी वैचारिक गतियों में जनता के प्रति गहरी संवेदना को महसूस किया जा सकता था।
गेारख निजी सम्पत्ति और व्यक्तिगत सत्ता का विरोध करने वाले सच्चे विचारक थे। यदि हमारे कथन को बहुत दूर तक न घसीटा जाय और सही संदर्भ में समझा जाय तो मैं कहना चाहूंगा कि गोरख कुछ मायनों में गांधी के क्रातिकारी अवतार थे। वे अगर निजी सम्पत्ति वाले समाज के विरूद्ध थे तो यह उनके आचरण और जीवन में भी दिखता था। और जाहिरा तौर पर, यह दिखावा नहीं था। जितना न्यूनतम में गोरख रहते थे, उतने न्यूनतम में रहने का साहस उनके समानधर्मा क्रांतिकारी नहीं कर सकते थे। उनकी संवेदना की उठान इतनी ऊंची, प्राकृतिक और स्वाभाविक थी कि उसे लेकर उनके समानधर्मा मित्र प्रायः चिंतित हो जाया करते थे। गोरख नें अपनी संवेदना और सांसारिकता में तालमेल बिठाने की शायद ही कभी कोशिश की। वे अगर किसी चीज का सबसे अधिक आदर करते थे, तो वह उनकी अपनी ही संवेदना थी।
गेारख जिस काल में जन्मे थे, वह निजी सम्पत्ति की लालच में डूब जाने का उत्कर्ष काल था। जो कामरेड या कवि कलाकार इस बे-शर्म लालच में डूबने उतराने से परहेज करते थे उनमें भी, छिपे तौर पर ही सही, निजता का लोभ इतना प्रबल था कि वे इस या उस रास्ते से उसेे संतुष्ट करने का रास्ता निकाल ही लेते थे। लेकिन गोरख सामाजिक प्राथमिकताओं के बीच कभी भी खास अपने लिए थेाड़ी सी भी जगह बना लेने की फिक्र करते हुए नहीं दिखे। अगर कहीं उनके मन के किसी कोने में यह इच्छा जगी भी होगी तो उनकी सामाजिकता की संवेदना इतनी प्रबल और का्रंति का स्वप्न इतना असंदिग्ध था कि उसके सामने ऐसी तुच्छताएं गोरख के भीतर अधिक देर तक टिक भी नहीं सकती थीं। गोरख चाहते तो तमाम दूसरे क्रांति-सेवी विद्वानों की तरह,क्रांतिकारी कार्यकर्ता का दायित्व निभाते हुए, एक बड़ा कवि, आलोचक, निबंधकार या कथाकार बन सकते थे। साहित्य और विचार की दुनिया में वे जिस भी मुकाम को पाना चाहते हासिल कर सकते थे। उन्होंने कहानियां भी लिखीं, और कविताएं भी। विचारपरक आलेख के मामले में उनकी प्रतिभा निर्विवाद थी। अपने समय की पत्रिकाओं द्वारा चलाई बहसों में उनकी सतर्क हिस्सेदारी को देखते हुए अनुमान लगाया जा सकता है कि यदि चाहते तो वे समर्थ आलोचक भी बन सकते थे। लेकिन यह सब करना उनके अभियान का हिस्सा था। निजी महत्वाकांक्षाओं की पूर्ति या जीवनोपरांत अपने नाम से कुछ बौद्धिक सम्पदा छोड़ जाना उनके जीवन का लक्ष्य न था। वे उनमें से नहीं थे, जो दिमाग में आये हुए हर विचार, वाक्य,शब्द और यहां तक कि अक्षर तक को रचना रूप में ढाल कर अपनी स्थाई निधि बना लेने के लिए परेशान रहते हैं। जिन्हें हर साल अपनी अस्मिता को प्रमाणित करने के लिए किसी न किसी किताब या करतब के साथ देश और समाज के मंच पर हाजिर होना जरूरी लगता है। बहती हुई धारा में अपनी जगह बनाने को व्यग्र उपलब्धि-प्रेमी ऐसे रचनाकारों- लेखकों की जमात से अलग रहते हुए, गोरख संस्कृति और विचार की ऐसी दुनिया गढ़ना चाहते थे जिसमें शोषण के विरूद्ध संधर्ष की चेतना से सम्पन्न पीढ़ियां तैयार होती रहें। किसी किताबी रचना से अधिक वे उस मनुष्य की रचना करना चाहते थे जो एक नये समाज और नये संसार की रचना के प्रति संकल्प बद्ध होगा।
गोरख ने कम लिखा है। जो लिखा ह,ै कठिन संधर्षाो के बीच लिखा है। अपने हिरावल दस्तों के सपनों को स्पष्ट और सक्रिय करने के लिए लिखा है। यद्यपि उन्होंने कागज पर लिखने से अधिक युवा मनों में सपनों की इबारत लिखना अपने जीवन का ध्येय बनाया। लेकिन इसका मतलब यह नहीं कि उन्हें संघर्ष के व्यापक अभियान में साहित्य लेखन का मोल मालूम नहीं था। वे स्वयं भारतीय और पश्चिमी साहित्य और चिंतन परम्परा के गहरे जानकार थे। वे सामाजिक बदलाव के मुहिम में अपने समकालीन साहित्यकारों की अहमियत को भी जानते थे। साहित्य-कर्म उनकी निगाह में आंदोलन का ही एक अनिवार्य अंग था। इसलिए वे व्यक्तियों के स्तर पर घटित हो रहे साहित्यिक-रचनात्मक प्रयत्नों को एक निश्चित लक्ष्य से जोड़ देने के लिए सामूहिक विवेक की रचना करने की जरूरत भी महसूस करते थे। वे जानते थे कि किसी ऐतिहासिक लक्ष्य का संधान अकेले का काम नहीं है। अतः उन्हेांनें जसम के रूप में जिस वैचारिक-सांस्कृतिक संगठन की रचना करने की पहल की,। उनकी निर्वैयक्तिक रचनाशीलता की यह ऐसी विरल कृति है जिसकी प्रेरणा से मुक्तिकामी विचारों की अजस्त्र परम्परा हमेशा ही आगे बढ़ती रहेगी।
जसम यदि किसी भी रूप में अपने होने को गोरख के सपनों से जोड़ कर देखना चाहता है तो उसे उनकी संवेदना के गहरे आशयों को अपना पाथेय बनाना होगा।
कपिलदेव