कपिल देव

कपिल देव
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Friday, May 4, 2012

वे  डरते हैं

हां उन्होनें अपनी
चूक स्वीकार कर ली है
यह तत्परता उन्हें उदार निर्भीक और निडर बनाती है
उफान आए और किनारे बिखर जाएं
बाढ़ उन की नाक तक पहुंचे ओैर
नाक बचाने का प्रश्न खड़ा हो, इससे
वे डरते हैं
और यह डर उन्हें निष्पाप साबित करता है।
डर का प्रदर्शन करना जानते हैं
वे
इतिहास और भूगोल
गौलीलियो और स्पार्टाकस
मार्क्स और मुक्तिबोध -कहीं से भी कहीं तक चल कर
वे निरपराध होने का सबूत ला सकते हैं
इतिहास के जानकार और
बाजार के विशेषज्ञ
बाढ और विरोध का प्रबंधन करने में माहिर हैं वे

आत्मा की खोखली तहों में छिपी लालसाएं जब तब पीछा करती हैं
पीछा करती हैं अपनी ही परछाइयां
और वे अपनी परछाइयों का पीछा करते हुए जा पहुंचते है
हत्यारों और जुल्मियों की महफिल में
उन्हें तिलक चंदन प्रिय है
प्रिय है अंगराग और आमंत्रण
संवोधन और सम्बन्ध उन्हें लुभाते हैं मगर
आत्मा के खोखल में बैठा आस्थाओं का डर
सताता है जबतब
सिद्धान्तों की पाण्डुलिपियांे के ईंट गारे से बना
आत्मा का खोखल
उनके डर का अंतस्तल है
यह डर ही उन्हें कठोर बनाता है

कठोर आस्थाओं का खोखल ही उनका शरण गाह बनेगा।

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