कपिल देव

कपिल देव
चित्र

Thursday, February 25, 2010

इस तरह जो बचा रहेगा वह

यहीं से शुरू होगा इतिहास
पिछला बाकी सारा पीछे छूट जाएगा
पलट दिया जाएगा पन्ना
सरकारें
बदल दी जाएंगी
स्मृतियां रहेंगी - मगर रोती हुई - किसी कोने या कूडेदान में

जो बचा रहेगा वह
इतिहास नहीं इतिहास के बचे होने का शोक होगा
बस, शोक ही बचा रहेगा
शोक का इतिहास नहीं बचा रहेगा

गांधी का नाम ले लेकर हलकान हो रहे लोगांे
सोचो, क्या है तुम्हारा संकल्प
किस श्रेणी के डिब्बे में यात्रा कर रहा है तुम्हारा स्वाभिमान
जबकि तुम्हें पकड़ लिया गया है बिना टिकट यात्रा के जुर्म में पहले ही
तुम्हारी गुप्त आकांक्षाओं के किसी प्लेटफार्म पर

बेचारा यह मजबूर समय
जिन हाथों में अपने भविष्य की रेखाएं खोज रहा है
उन हाथों नें तो पहले ही
खूनी चेहरेां की कालिख छिपाने का ठेका ले लिया है

‘समय’ नें शर्म का सामना करना सीख लिया है
अब उसकी चेतना धूप के लिए किसी सूरज का इंतजार नहीं करती
अब तो कुछ शब्द ही काफी हैं
वैसे धूप में धूप बची भी कहां है
जहां होती थी धूप
वहां रोशनी के नाम पर अब
गर्व से तनी एक तर्जनी है
जिसके नाखून पर चमक रहा है
अपने ही विरोध में विश्वास मत डाल चुकने का निशान!


अब तो
पानी पर छाई हरी हरी काई हरेपन का
मिसाल बन गई है जैसे-
हरीतिमा को स्थगित कर काई का हरापन हो रहा है पर्यावरणीय

तितलियों,
फूलों और इंद्रधनुष के रंगांे का रक्त निचोड लिया गया है
दरबारों में सज्जित
स्वस्तिक छाप अल्पनाओं पर
सजाया गया अमृत कलश अस्ल में तो
देवासुर संग्राम का विष-कुम्भ है
जिसका स्वर्ण-मुख-दीप
रंगों के रक्त से प्रदीप्त हो रहा है।

इतिहास में
यह नवीनतम उपयेाग है
रंगों का

इसतरह
तितलियों,फूलों और इंद्रधनुष की आत्माओं की पहचान को
पहचान की सूली पर टांग दिया गया है अैार
हुक्मरानों नें रंगों से साठ गांठ कर ली है

अब रंग ही लिखंेगे हमारी पहचान

हमें रंगो से पहचाना जाएगा-
उन रंगों से, जो
तितलियों और फूलों और इंद्रधनुष की हत्या और अनन्त पाप
के खनिज हैं

संविधान के कंगूरों पर लहराता
केसरिया-लाल-सफेद- हरा-पीला-नीला
ही अब
वर्तमान की रगों में बहते रंगों का इतिहास माना जाएगा

तितलियों
फूलों और
इंद्रधनुष के रंगों का नया इतिहास!
लिखा जाएगा
इस तरह।


20.02.010

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