कपिल देव

कपिल देव
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Monday, April 16, 2012

अनुवाद श्रिंखला 3 वियतनामी कहानी

चंादनी रात में पंचायती बरगद के नीचे दैवी बाजार
(वियतनामी कहानी)
वाई बान

अंग्रेजी से अनुवाद- कपिलदेव

सुइ नामक एक गांव के परली तरफ एक बिधवा अपनी बेटी के साथ रहती थी। विधवा मां की उमर होगी यही कोई चालीस के आस पास। उसकी कमर पतली, और होंठ रसीले थे। हंसती तो गाल में सुदर सा गढा बनता जिससे उसके गाल और भी सुदंर लगने लगते। उसकी बड़ी बड़ी काली आंखें गहरे कुंए की तरह ही गहरी और सुंदर थीं। लोगों का कहना था कि उसका इतना सुंदर होना ही उसके विधवा बनने का सबब बना । विधवा होने के दस वर्षो तक उसके चरित्र के उपर किसी को भी उंगली उठाने की हिम्मत नहीं हुई। हालांकि उसके इस हालात का लाभ उठाने की ताक में रहने वालों की कमी भी नही थी।
उसकी बेटी सत्रहवें साल में थी। एक ऐसी उम्र जिसमें कुदरती तौर पर सभी लड़कियों के बाल खूबसुरत और चमकीले होते है। चेहरे पर एक खास तरह की चमक और बदन में चिकनाई आ जाती है। आंखों को छोड़ कर, वह करीब करीब अपनी मां की टॅू कापी लगती थी। इसकी आंखें मां की आंखों जैसी साफ और चमकीली नहीं थी।
यह पांचवे महीने की पूनों की रात थी। केले के पेड़ों पर चांदनी का शांत उजाला बिछा हुआ था। लड़की,जिसका नाम लुआ था, नें अनुभव किया कि उसकी मां आज दोपहर से ही न जाने क्यों काफी बेचैन बेचैन सी दिख रही है। एक टोकरी में उसने तम्बाकूं के बंडल पहले ही रख कर उपर से एक चटाई डाल कर दबा दिया था। तम्बाकू बेचने जाने के पहले उसने केले का एक तना काट कर अलग किया। बेटी को रात का खाना जल्दी खाकर जल्दी सो जाने की हिदायत वह पहले ही दे चुकी थी।
ल्ेकिन लाख कोशिश के बाद भी लुआ को नीद नहीं आ रही थी। खिड़की से बाहर,चांदनी रात उसे लुभाती रही। आज जाने क्यों उसका मन बेचैन और चेहरा लाल हो रहा था। आज वह जोर जोर से कोई गीत गाना चाह रही थी। आज दोपहर को, जब वह धान में पानी दे रही थी, एक नौजवान से उसकी भेंट हो गई थी। उस युवक ने कहा था, ‘‘ तुम बहुत संुदर हो। मैं तुमसे शादी करना चाहता हूं। यकीन मानो, तुम कभी विधवा नहीं बनोगी।’’ यह सुनकर उसनें युवक पर पानी का पूरा घड़ा ही उलट दिया था।
दिन वाली उस घटना में डूबी लुआ का घ्यान, मंा के कमरे से आ रही वाली खटरपट से टूट गया। उसनें अपनी आखें बंद करलीं और सांस रोक कर पड़ी रही। कुछ ही देर में उसनें अपने कमरे में मां के कदमों की आहट सुनी। मां नें मच्छरदानी के भीतर लुआ को ध्यान से देखा और लुआ के सो रहे होने का इतमिनान हो जाने के बाद वह कमरें से बाहर निकल गई। लुआ नें अब आंखें खोल दी । उसने देखा, मां अपने सर पर टोकरी रख कर कमरे से बाहर - बांस की फट्ठियों से बने गेट को आधा खोल कर धीरे से बाहर निकल कर धान के खेतों में रास्ता बनाती हुई निकल गई। लुआ को कुछ संदेह सा हुआ। वह उठी और मां के पीछे पीछे चल पड़ी।

गांव के किनारे किनारे पगडंडी पर मां तेजी से चली जा रही थी। लगभग बीस कदम की दूरी पर लुआ भी उसके पीछे पीछे चल रही थी। गांव के बाहर निकल कर मां, लम्बे लम्बे मलबरी बृक्षों की बाग की तरफ जाने वाली सड़क पर मुड़ गई। इस बगीचे में बच्चे खेलने आया करते थे। हालांकि उन्हें यहा आने से हमेशा ही मना किया जाता था। ऐसा माना जाता था कि इस बगीचे में भूतप्रेत आदि आत्माएं रहती है और बच्चोें को पकड़ कर उठा लेजाती हैं।
थेाड़ी दूर पहले से ही लुआ को कुछ आवाजें सुनाई देने लगीं। जैसे किसी बाजार से आती हुई जैसी आवाजें। उसने देखा कि उसकी मां भी तेजी से वहां पहुंची और तुरंत अपने स्थान ले लिए। जैसे जैसे लुआ नजदीक पहुंची, उसने देखा कि लोग बाहर से खेतों के बीच पगडंडी रास्तों से हो कर वहां मलबरी पेड़ की छाया में इकट्ठा होते जा रहे थे।
उसकी मां एक खाली पेड़ के नीचे रूकी। लआ ने देखा कि मां ने पानी से भरे एक कटोरे के समीप ही केले के फलों और दूसरी चीजों को करीने से जमीन पर सजा दिया। अच्छा, तो यह एक बाजार है, जहां मां अपना सामान बेचने आती है। लुआ अपने आप को आश्वस्त करने के लिए बुदबुदायी और आस पास अपनी नजरें दौड़ाने लगी। चांद की सफफाक रोशनी में आवाजें बिलकुल साफ सुनाई दे रहीं थी। लेकिन लोगो को साफ साफ देख पाना मुश्किल था। सिर्फ उनकी छायाएं एक दूसरे से घुली मिली सी आती जाती दिख रही थीं। पेड़ की छाया के नीचे लोग ऐनीमेशन चित्रों की तरह बातें करते हुए सुनाई दे रहे थे। कुछ के चेहरों पर खुशी की चमक थी जबकि कुछ दुखी से दिख रहे थे। वे आपस में एक दूसरे के गले मिल रहे थे। उनकी आंखें भीगी हुई थीं।
वहीं कुछ दूरी पर कोई बांसुरी बजा रहा था। बांसुरी की आवाज से मोहित हो लुआ ने उधर की तरफ पैरों के बल उचक कर देखा। उसे अचानक ही लगा कि उसके गाल लाल हो कर तपने लगे हैं। बांसुरी की आवाज का पीछा करते हुए वह वहा पहुंची तो देखा कि वह बांसुरी बजाने वाला मलबरी के एक पेड़ के नीचे बैठा है। जमीन पर उसके सामने बांसुरी का ढेर लगा हुआ है। लुआ नें उनमें से एक बांसुरी उठा ली और जिज्ञासा भरी नजरो से देखने लगी।
‘‘ तुमको चाहिए?’’ बांसुरी बादक ने पूछा।
‘‘हां’’
‘‘ये वाला अच्छा रहेगा।’’
‘‘ कितने पैसे देने होंगे?’’ इस बार लुआ नें बांसुरी बेचने वाले की तरफ नजर उठा कर देखा। वह एक तीखे नाक नक्श वाला खासा जवान आदमी था।
‘‘ एक कुवान’’
ल्ुाआ नें अपनी पाकेट टटोल कर देखा। वह घबराई कि पैसे लाना तो वह भूल ही गई थी।
‘‘ कोई बात नहीं। तुम बाद में भी इसके पैसे चुका सकती हो।’’ बांसुरी बिक्रेता नें उदारता दिखाते हुए कहा। ‘‘ क्या तुम अपनी बांसुरी की जांच करना चाहोगी?’’
‘‘कैसे बजाया जाता है, म्ुाझे नही मालूम ।’’
‘‘ अरे, यह तो बहुत आसान है। देखो, पहले इन छेदों को बंद करो। फिर इसमें जोर की फंक मारो।’’
‘‘ मैं यह सब बाद में सीख लूंेगी। अभी तो आप कृपया कोई और घुन बजा कर सुनाएं।’’
स्ंागीत की धुनों से आसपास का वातावरण भर उठा। उदास कर देने वाला संगीत फिंजा में तैर गया। संगीत कें जादू नें लुआ को इस कदर बांध लिया कि उसे लगा मानो कोई हवा का झोंका उसे उड़ाए लिये जा रहा है। उसके भीतर भावनाओं का ऐसा ज्वार उमड़ा जैसा कि उसने कभी महसूस नहीं किया था।

च्ंांद्रमा क्षितिज के नीचे धीरे धीरे डूबने लगा था। नौजवान नें बांसुरी बजाना बंद कर दिया। ‘‘बाजार अब करीब करीब उठ चुका है।’’ उसने लुआ से कहा,‘‘ अपनी बांसुरी लेलो। पैसे अगली बार दे देना।’’
‘‘ मुझे बांसुरी की जरूरत ही क्या है। मैं तो अभी भी इसे बजाना नहीं जानती।’’
‘‘ क्या तुम फिर आओगी? मैं तुम्हारा इंतजार करूंगा और तुम्हें बजाना भी सिखा दूंगा।’’
‘‘ मैं दुबारा फिर आउंगी। और मिलूंगी।’’ कह कर लुआ तेजी से उठी ओैर चल पड़ी। उसने अपनी मा, जो पेड के नीचे अपना सामान समेट कर चलने की तैयारी कर रही थी,ं का इंतजार बिलकुल नहीं किया। लुआ जल्दी ही अपने घर पहुंच गई। हाथ पैर धोए और मच्छरदानी के भीतर घुस कर सोने का उपक्रम करने लगी। थोड़ी ही देर में वह सो भी गई।
अगली सुबह लुआ और उसकी मां, दोनों को उठने में देर हो गई। भूख के मारे सूअरों का बुरा हाल था। वे अपने दड़बें में चिल्लपों मचा रहे थे। ‘‘ लुआ, क्या हुआ?’’ मां ने रूखी आवाज मे लुआ को फटकारा। मगर उसकी आवाज का नकलीपन छिप न सका। लुआ की पहले वाली शांति गायब हो चुकी थी। उसका दिमाग तो रात के बांसुरी वाले नौजवान की याद में खोया हुआ था।

अगली पूनम की रात। इस बार लुआ को पता था कि उसे क्या करना है। मां जब चली गई, तब लुआ उठी। उसने अच्छी तरह अपने बालों मे कंघी किया,चोटी बनाई और चारो तरफ से कस कर नए फैशन के मुताबिक कुण्डली बनाकर बांस की कंघी से कस दिया। बांस के बने कक्से में से अपने बचाकर रखे पैसे निकाले और सधे कदमों से चल पड़ी।
धान के अभी अभी रोपे गए पैाधों की गंध से रात का वातावरण सुगंधित हो रहा था। लुआ नें बांसुरी बेचने वाले को खोजती हुई नजर दौड़ाई। वह अभी तक आया न था। उसनें बाजार का एक चक्कर लगाया। उसे वह उसके देखे किसी भी बाजार से एक दम अलग किस्म का लगा। वहां केवल फलेां की दुकानें थी। चावल,चीनी, नमक,मछली आदि कुछ भी नहीं। यहां तक कि हर बाजार में पाए जाने वाली किसी लुहार की दुकान तक नहीं थी। यही हाल खिलौनों की दुकान की भी थी। मगर वहां नए साल पर बिकने वाले पोस्टरो जैसे पोस्टर जरूर बिक रहे थे।
लुआ इस उटपटांग की बाजार के बारे में सोच ही रही थी कि बांसुरी की आवाज उसके कानों में पड़ी।
‘‘ अच्छा तो तुम यहां हो।’’ नौजवान नें जैसे राहत की सांस लेते हुए कहा। ‘‘ मैं तो डर रहा था कि शायद दुबारा देखने को नहीं मिलोगी।’’
‘‘ इस बार मैं पेैसे लेकर आई हूं। एक बांसुरी खरीद सकती हूं।’’
‘‘तुम को यहा पाकर मैं बहुत बहुत खुश हूं। तुम यहां मेरे पास बैठो। मैं तुम्हें बासुरी बजाना सिखाता हूं। वैसे मेरा नाम थांग है।’’
मेरा नाम लुआ है।
ल्ुआ को बांसुरी सीखने की तनिक भी इच्छा न थी। उसे तो बस थान्ह को बजाते सुनना अच्छा लगता था। इसलिए थान्ह नें इस बार एक प्रेमगीत बजाना शुरू किया। यह प्रेमगीत लुआ को इतना पंसंद आया कि वह उछल उछल पड़ती और कभी कभी तो अपनी बाहों को नोचने लगती।
‘‘ क्या तुम्हें यह गाना पसंद आया?’’ थान्ह ने पूछा।
‘‘ मुझे इतना मजा आज तक कभी नहीं आया था।
‘‘ तुम्हारी उम्र क्या है?’’
‘‘सोलह’’
‘‘ तुम मुझे भइया कह कर बुलाओगी। मैं बीस का हूं।’’
‘‘क्या तुम यहां हमेशा आते हो?’’
‘‘ हां’’
‘‘ यह व्यवसाय बहुत फायदे का तो नहीं लगता! क्या नहीं?’’
‘‘ नही, ऐसी बात नहीं है। लेकिन मेैं इसकी परवाह नहीं करता। मैं तो लोगों का मनोरंजन करने के लिए यहां आता हूं।’’
‘‘ तुम किसलिए यहां आती हो?’’
‘‘ मैं अपनी मां पर नजर रखने आती हूं।’’
‘‘तुम्हें यहां नहीं आना चाहिए था।’’
‘‘क्यों? यहां तो बहुत मजा आ रहा है!!’’
‘‘ मुझे तुम्हारी यह कंघी बहुत अच्छी लग रही है। क्या तुम इसे हमे दे सकती हो? अगली बार जब आओगी तो तुम्हें वापस कर दूंगा।’’
‘‘ हां हां, रख लो। मैं फिर आउंगी।’’
सातवें महीने की पूर्णिमा पर लगने वाला इस बार का बाजार पहले की बनिस्पत बहुत ज्याद चहल पहल से भरा था। भीड़ की धक्का मुक्की में किसी तरह रास्ता बनाकर आगे बढ़ते हुए लुआ नें गोैर किया कि लोग असामान्य किस्म के कपड़ों में काफी रहस्यमय लग रहे थे।
थांग नें लुआ के दोनों हाथ पकड़ कर कहा - ‘‘ मैं तुमसे एक जरूरी बात कहना चाह रहा हूं। अब मैं तुम्हारे बिना बिलकुल रह नही ंसकता। मैं तुमसे शादी करना चाहता हूं। मैं अपनी मां से कहूंगा। वह तुम्हारी मां से मिलकर बात करेगी।’’
‘‘ मुझे नहीं मालूम मां तैयार होगी या नहीं।’’
‘‘तुम्हारा क्या कहना है।’’
‘‘ हां’’
‘‘धन्यवाद’’ थांग ने लुआ से कहा और उसे लेकर दौडता हुआ थोडी दूर तक गया जहां उसने लुआ को खीच कर अपने पास बिठा लिया और उसके होठों पर अपने होंठ रख दिये। बाहों में कसकर दोनों गालों को चूम लिया । थान्ह के होठों की छुअन की तपिस इतनी मादक महसूस हुई कि लुआ को लगा कि जैसे उसका पूरा तनबदन उत्तेजना से भर कर हवा में झूल रहा है। उसे अपने भीतर एक विजली की तड़प से महसूस हुई और लगा कि पतंग की तरह हल्की हो कर वह आसमान में उड़ रही है। उसके कानों में लगातार थान्ह की बांसुरी की मदमाती धुन मां की मीठी आवाजें, चिड़ियों की मीठी चहचहाहट और घान की बालियों पर हवा की सरसराहटें उसके कानों में गूंजती रहीं।
समय का पता ही नही चला। बाजार जाने वाले धीरे धीरे वापस जा चुके थ्ेा। ‘‘अब तुम्हे घर जाना चाहिए’’ थान ने कहा। लुआ सर पर पांव रख कर तेजी से घर की तरफ दौड़ पड़ी। उसरात सपने में उसने थान को अपने पास ही सोया हुआ महसूस किया। उसे लगा कि थान उसके बदन को सहला रहा है। वे दोनों खुली हवा में पानी से भरे तालाब में तैर रहे हैं ।
उस रात भी मां और बेटी दोनों देर तक सोती रहीं। मां पहले उठ गई। उसने बेटी को सोते हुए देख कर पूछा, ‘‘तबीयत ठीक नहीं क्या ?’’
‘‘नहीं मां, मैं बिलकुल ठीक हूं।’’ लुआ नें उत्तर दिया। लेकिन तत्काल ही रात के सपने की याद करके वह कुंए की तरफ भाग कर पहुंची और अपने तपते हुए चेहरे को पानी से धोने लगी।
मंा को माजरा समझ में नहीं आया। वह बस अपना सिर हिला कर रह गई।
लुआ को वही सपने रोज रोज आने लगी। और वह एक दिन बीमार पड़ गई।
अगले आठवें महीना का चांद हर बार से ज्यादा चमकदार था। थान बाजार के मुहाने पर ही लुआ का इंतजार कर रहा था। ‘‘ मैं तो तुम्हारे इंतजार में मरा ही जा रहा था।’’ थान नें लुआ के कान के पास जाकर कहा। अचरज से लुआ नें देखा और सोचा, कहीं उसे आने में देर देर तो नहीं हुई? ’’हम इतनी रातों एक साथ नहीं थे, तुम्हारी तबीयत ठीक तो है ?’’
‘‘हां, मैं बिलकुल ठीक हूं।’’
‘‘मैनें मां को सब कुछ बता दिया है। कोई शुभ दिन देख कर वह तुम्हारा हाथ मांगने तुम्हारी मां से मिलने जाएगी।’’
रोज वाली जगह पर वे दोनेां बैठ गये। थान अपनी बांसुरी बजाने लगा और लुआ उसका बांसुरी बजाना देखने लगी।
अगली सुबह लुआ जब पीली और उदास दिखी थी तो उसकी मां ने इसका कारण पूछा। ‘‘ ‘‘हमें सच सच सब बात बतलाओ।’’ ‘‘ यहां हमारे और तुम्हारे अलावा तीसरा कोई नहीं है। मैने तुम्हें अपने हाथों से पाला है। तुम हमारी इकलौती संतान हो। अगर तुम्हारे साथ कुछ ऊंच-नीच हो गया तो मैं अपने को कभी माफ नहीं कर पाउंगी। सच सच बताओं, कहीं तुम किसी से प्यार तो नहीं कर बैठी हो? या किसी नें तुम पर कोई जादू कर दिया है?’’ लुआ तब तक चुप रही जबतक कि मां के आंखों से आसंू नहीं निकल आए। मां को रोता हुआ देख उसने फूट कर कहा,‘‘मां’’ वेाक का रहने वाले एक आदमी ने मेरा हाथ मांगा और मैंने हां कर दिया है। उसका नाम थान है। उसकी मां तोहफे के साथ तुमसे मिलने आएगी।
‘‘ अच्छा, तो यह बात है! तुम्हें हमसे पहले ही बताना चाहिए था। वैसे तुमने खुद उसे अपने घर आने के लिए क्यो नहीं कहा?
‘‘ हम उससे रात में मिले थे।’’ मां आशंका से पीली पड़ गई। डर और चिंता ग्रस्त वह जल्द से जल्द वोक पहुंच जाना चाहती थी। जल्द ही उसने वोक में उस औरत का पता लगा लिया। वह एक अच्छे स्वभाव की सीधी सी उम्रदराज औरत थी।
‘‘क्या मैं तुम्हारे बेटे से मिल सकती हूं?’’ उसनें औरत से पूछा।
यह सुनते ही वह औरत जैसे दर्द से कराह उठी और दहाड़ मार कर रोने लगी। ‘‘वह तो मर चुका है। वह बांसुरी बनाने के लिए बांस काटने गया था। वहीं उसे सांप ने काट लिया।’’
बूढ़ी औरत से इजाजत लेकर लुआ की मां नें तीन अगर बत्तियां जलाईं ओैर पूजा के आले पर स्टैंड में खोस दिये। वह आले पर रखे उस नैाजवान लड़के की तस्बीर को दुख पूर्वक देख रही थी।
‘‘ हम दो अलग अलग दुनियाओं में रहने वाले हैं,इसलिए हमारे बीच सम्बन्ध मुमकिन नहीं है।’’ लुआ की मां नें उस नौजवान से प्रार्थना के भाव में कहा,‘‘ यदि तुम सचमुच हमारी बेटी को चाहते हो तो तरफ से दुआ करो कि उसे कोई अच्छा सा बर मिले।’’
घर लौट कर उसने अपनी बेटी से पूछा,‘‘ तुम चांदनी बाजार गई थी ? बताओं क्या मैं सही कह रही हूं।’’
‘‘हां, मगर तुम्हें कैसे पता?’’
‘‘ थान इस दुनिया में नहीं है। वह मर चुका है।’’
‘‘ यह सही नहीं हो सकता’’
‘‘ यही सही है।’’ और मां नें अपनी बेटी को उस प्रेत-बाजार के बारे में सब कुछ विस्तार से बता दिया। यह बाजार मरे और जिंदा दोनों का बाजार था। इस बाजार मंे जीवित आदमी अपने साथ पानी का कटोरा लेकर जाता है। कटोरे में अगर सिक्का डालता है तो डूब जाता है जब कि मरे हुए आदमी के हाथ का सिक्का तैरता रहता है। लेकिन वह भी दिन भर में ही लुप्त हो जाता है।
‘‘ तुम्हारे पिता से मिलने की उम्मीद लेकर मैं वहां महीने में एक बार जाती हूं।’’
‘‘ हांलांकि तुम्हारे पिता अपने जीवन से कभी खुश नहीं रहे, लेकिन हमारे प्रति अपने प्यार के कारण वे स्वर्ग से उस बाजार में आते हैं।
लुआ नें अपनी कल्पना में, स्वर्गलोक में बैठे थान को देखने का प्रयास किया। ‘‘ मैं नहीं मान सकती कि वह इस दुनिया में नहीं है।’’ आंसुआंे से डूबी आंखों के साथ लुआ नें मां की बात का भरपूर विरोध किया।
लुआ का शक मिटाने के लिए उसकी मां अगले महीनें अपने साथ लुआ को भी चांदनी बाजार ले गई। यह बसंत का महीना था। चांद बिलकुल साफ और रात बिलकुल खिली हुई थी। ‘‘ तुम्हारे पिता कई बार हमसे तुम्हे देखने के लिए कहते रहे हैं। लेकिन मैं ही उनसे तुम्हारा सामना कराने से कतराती रही हूं।’’ रास्ते चलते हुए मां नें लुआ को विश्वास में लेते हुए कहा।
‘‘ तुम्हें अपने पिता की याद है?’’ बाजार में पहुंचने पर मां नें लुआ से पूछा।
‘‘ बहुत थोड़ी सी याद है। उनको मरे बहुत दिन हुए।’’
तभी लुआ को बांसुरी की वह परिचित धुन सुनाई पड़ी। वह वहां से निकल कर उस म्यूजिक तक जल्द से जल्द पहुंच जाना चाहती थी। लेकिन मां नें कहा,रूको। ‘‘अभी हमें यहां कुछ कर्मकाण्ड पूरे करने हांेगे। यहां रूक कर पहले अपने पिता से मिल लो। थान से बाद में मिल लेना।’’
थोड़ी देर बाद उसनें एक आदमी को अपनी तरफ आते देखा। वे पिता थे। उन्हें देखते ही वह उनकी तरफ बांहे फैलाकर उसी तरह लपकना चाही जैसे कि बचपन में किया करती थी। लेकिन ऐसा न करके उसनें एक संकोची जवान लड़की की तरह धीरे से उनका अभिवादन किया।
‘‘ अरे, तुम तो इतनी बड़ी हो गई हो!’’ पिता ने आश्चर्य से कहा। ‘‘ और तुम कितनी तो सुंदर हो’’
‘‘ मां कहती थी आप हर बार उनसे मिल कर दुखी हो जाते थे। ऐसा क्यों ?’’ लुआ ने पूछा।
‘‘ इसलिए कि मैं अपने इस रूप में तुम्हारी मां की कोई सहायता नहीं कर सकता हूं।’’ क्या ही अच्छा होता अगर वह हमसे इतना प्रेम नहीं करती और मेरे न रहने पर किसी अन्य आदमी को अपना साथी बना ली होती। मैं सोच सकता हूं कि वह मेरे बिना कितना अकेला महसूस करती होगी। लेकिन मैं कर ही क्या सकता हूं। हर महीने उसका यहां आना उसकी यादों को ताजा कर देता है।’’
‘‘ वह केवल याद ताजा करने नहीं आती। हर बार यहां आकर वह बहुत खुश होती है।’’
‘‘ तो तुम कहना चाहती हो कि तुम्हारी मां सपने में हमसे मिल कर बहुत खुश है? अरे सपना तो बस सपना ही होता है। जगते ही फिर वहीं दुख वही अकेलापन! तुम्हारे संसार में लोग चाहते हैं कि वे जो कुछ देखते हैं वह सपना नहीं सच हो!’’
इस बीच मां बांसुरी बेचने वाले युवक की ओर चली गई थी।
‘‘ मैं एक बांसुरी खरीदना चाहती हूं।’’ उसनें बांसुरी बेचने वाले से कहा। वह बड़ी बेसब्री से इधर उधर देख रहा था।
‘‘ क्या आप बजाना जानती हैं?’’
‘‘ नहीं, मुझे अपनी बेटी के लिए लेना है।’’
‘‘ क्या वह बजाना जानती है?’’
‘‘ नहीं, लेकिन उसे बांसुरी की धुन बहुत अच्छी लगती है। खास कर के वह धुन जिसे तुम अभी बजा रहे थे।’’
‘‘ तब तो वह........’’
‘‘ उसका नाम लुआ है।’’
‘‘ क्या वह आज यहां नहीं आई है? क्यो?’’
‘‘ नौजवान आदमी सुनो, मैं तुम्हारी मां से मिल चुकी हूं और उन्होंने सब कुछ बता दिया है। मुझे पता है कि तुम मेरी बेटी को बहुत प्यार करते हो। वह भी तुम्हें उतना ही प्यार करती है। लेकिन तुम दूसरे संसार में जा चुके हो। इसलिए तुम और वह दोनो साथ नहीं रह सकते। तुम अपनी दिव्य ताकत का उपयोग कर मेरी बेटी की सहायता करो कि उसे कोई अच्छा सा ऐसा आदमी मिले जिसके साथ उसका अच्छा निर्वाह हो सके। मैं अपने घर के पूजा घर में तुम्हारी तस्वीर रख कर तुम्हारी पुण्यतिथि पर दीपक जलाकर तुम्हें याद करूंगी।’’
‘‘ आप नें जो कहा वह बिलकुल ठीक बात है।’’ अपने आंसुओं को पोछते हुए थान नें सहमति में सिर हिलाया। लेकिन मैं उसे समय समय पर देखते रहना चाहता हूं। क्या यह हो सकता है?’’
‘‘ नहीं, ऐसा करने से वह तुम्हें कभी भूल नहीं पाएगी और यह उसके लिए अच्छा नहीं होगा।’’ लुआ की मां नें साफ साफ शब्दों में कहा।
‘‘यदि आप यही चाहती हैं तो आप कृपया उसे मेरी याद दिलाएं और उससे कहें मैं उसके अच्छे भविष्य की कामना करता हूं।’’ कहते हुए थान नें बांसुरी के झोले को समेटा और वहां से चल दिया।
मां वहां से बेटी के पास लौट आई और लुआ से कहा कि अब वह थान से मिलने जा सकती है। लुआ दौड़ पड़ी। उसका दिल धकधक कर रहा था। लेकिन थान अपने स्थान पर नहीं मिला। लुआ को लगा कि उस चांदनी रात में वहां वह एकदम अकेली है। जहां वे छिप कर मिला करते थे वहां भी थान के होने का कोई निशान नहीं था। थान से भेंट न होने से उसका दिल टूट गया। वह हाथ में चेहरे को छिपा कर फूट फूट कर रोने लगी।
लौटते हुए उसनें देखा कि उसकी मां और पिता बड़े मजे से आपस में बातें कर रहे थे। वह चुपके से रूक कर उनके बातें सुनने लगी।
‘‘ यह हमारी आखिरी मुलाकार होगी।’’ मां कह रही थी। ‘‘ अब हमें अपनी बेटी पर ध्यान लगाना है। अब जब कि वह अपने पहले प्यार में असफल हो गयी है, हताशा के इस क्षण में वह कुछ भी उंच नीच कदम उठा सकती है।
‘‘तुम ठीक कह रही हो।’’ पिता ने कहा। ‘‘ अपना और बेटी का खयाल रखो। मैं तुम लोगों के लिए जो कुछ कर पाउंगा अपनी तरफ से करूंगा।
‘‘ मैं पूरा जीवन आप को याद रखूंगी।’’
‘‘ नहीं, मेरी याद से तुम्हारा जीवन कठिन हो जाएगा। मैं चाहता हूं कि तुम मुझे पूरी तरह भूल जाओ। मैं तुम्हें किसी और आदमी से प्यार करते हुए देखना चाहता हूं। ऐसे आदमी के साथ, जो तुम्हारा ध्यान रख सके। तभी हमारी आत्मा को शांति मिलेगी।’’
उन दोनों ने लुआ को पास ही खडे देख लिया। मां नें लुआ से पूछा, ‘‘ थान से भेंट हुई?’’
‘‘ वह आज आया नहीं था।’’
‘‘कोई बात नहीं, जाने देा। यहां आओं और पिता जी को प्रणाम करो।
‘‘ सुनो बेटी,’’ पिता ने कहा,‘‘ तुम्हे एक ऐसा आदमी मिलेगा जो तुम्हे थान की तरह ही प्यार करने वाला होगा और वह तुम्हारा हर तरह से खयाल रखेगा। थान की तरह वह सपनों का प्रेमी नहीं होगा। अपने आप को सम्हालों। सब ठीक होगा।’’
लुआ फूट फूट कर रो पड़ी। उसके पिता नें उसे अपने सीने से लगा लिया। उसे एक तरह की ठंढी हवा में तैरने की अनुभूति हुई। ‘‘ देखा ?’’ पिता नें मजाकिया लहजे में कहा, ‘‘यह मैं हूं मगर मैं नही भी हूं।’’
लुआ नें उसके बाद थान को कभी नहीं देखा। उसे पता नहीं चला कि उसके साथ क्या हुआ। और लुआ की मां नें भी अपने पति को दुबारा नहीं देखा। वह पूरे मन से मालबरी पेडों के नीचे ‘पैगोडा’ की स्थापना के लिए धन एकत्र करने में लग गई।
एक शानदार पैगोडा का निर्माण कराया जिसका नाम ‘दाउ’ रखा गया। लोगों का मानना है कि यहां जीवित और दिवंगत लोग मिल कर अपनी यादों को आपस में बांटने के लिए एकत्र होते हैं। माना जाता है कि यह पैगोडा बनने के बाद चांदनी रात का दैवी बाजार लगना बंद हो गया।

...........000....... कपिलदेव 11 अप्रेैल 2012